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डॉ. हरमन जेकोबी का अटल अभिप्राय
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हुए
थे और फिर वातावरण ही सारा मूर्ति पूजा के पक्ष का था । तीसरा इन्हें अप्रसन्न भला वे क्यों करने लगे? बस इन्हीं कारणों से डॉक्टर महोदय ने अपना अभिप्राय बदला, किन्तु इनका खास हार्दिक अभिप्राय तो वही था, जो पहले दे चुके थे और जिसकी पुष्टि बाद में भी उन्होंने पंजाब के स्थानकवासी जैन संघ के डेपुटेशन और श्री वाड़ीलाल मोतीलाल शाह के सम्मुख की, इसलिए डॉक्टर महोदय का मूर्ति पूजा के विरुद्ध जो अभिप्राय है वह सत्य और अटल है।
सुन्दर मित्र ! इतना ही नहीं डॉक्टर महोदय ने हिन्द के बाहर जर्मन से भी ऐसा ही अभिप्राय दिया है, जहाँ कि स्थानकवासी समाज का एक बच्चा भी उनकी दृष्टि के सामने नहीं था । स्वर्गीय साक्षर श्रीमान् केशरीचन्दजी साहब भंडारी देवास निवासी ने अपनी अंग्रेजी पुस्तक "नोट्स ओन धी स्थानकवासी जैन" डॉक्टर साहब की सेवा में भेजी थी, जिसके उत्तर में डॉक्टर साहब नें श्री भंडारी जी को एक पत्र दिया था उसमें भी उन्होंने यह स्वीकार किया है कि मूर्ति पूजा जैनधर्म का मूल तत्त्व नहीं हैं, देखिये उनका पत्र |
( प्रभुवीर पट्टावली पृ० १३३ से)
Dear Sir,
Your kind letter of 9th instand the copy of the "Notes on the Sthanakwasi jains" Reached me here for away from Bombay. I have read the booklet with great interest and shall give notice of it in my report on Jainism which appears every second year in the archive for history of religiona German Journal being away from my book. I cannot inter into details of the subjects but if I
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