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________________ पच्चीस बोल। (६५) २५ बोल। १ पहले बोले गति चार-१ नरक गति २ तिर्यच गति ३ मनुष्य गति ४ देव गति । २ दूसरे बोले जाति पांच-१ एकेन्द्रिय २ बैइ. न्द्रिय ३ त्रीइन्द्रिय ४ चौरिन्द्रिय ५ पंचेन्द्रिय ।। ३ तीसरे बोले काय छः-१ पृथ्वी काय २ अप काय ३ तेजस काय ४ वायु काय ५ वनस्पति काय ६ बस काय । ४ चौथे बोले 'इन्द्रिय गांच-१ श्रोतेन्द्रिय २ चनु इन्द्रिय ३ घ्राणेन्द्रिय ४ रसेन्द्रिय ५ स्पर्शन्द्रिय । ५ पांचषे बोले 'पयोप्ति छः-१ आहार पर्याप्ति २ शरीर पप्ति ३ इन्द्रिय पर्याप्ति ४ श्वासोश्वास पर्याप्ति ५ भाषा पर्याप्त ६ मनः पर्याप्ति। ६ छठे बोले 'प्राण दश-१ श्रोतेन्द्रि बल प्राण २ १ जहां पर जीवों का अावागमन (पाना जाना) होवे वह गति है। २ एक सा होना एकाकार होना जाति है। ३ समूह तथा बहु प्रदेशी वस्तु को काय कहते हैं। ४ शब्द, रूप, रस, गन्ध, स्पर्श आदि वस्तुओं का जिसके द्वारा ग्रहण होता है उसे इन्द्रिय कहते हैं। ये पांच हैं-१ कान २ आंख नाक ४ जीभ ५शरीर (गले से पैर तक-धड़) - ५ अाहारादि रूप पुद्गल को परिणमन करने की शक्ति ( यन्त्र) को पर्याप्ति कहते हैं। . ६ पर्याप्ति रूप यन्त्र को मदद करने वाले वायु (Strem ) फो प्राण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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