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( ७३२ )
* अजीव परिणाम
( श्री पन्नवणाजी सूत्र, १३ वाँ पद )
जीव = पुद्गल का स्वभाव भी परिणमन का है इसके परिणाम के १० भेद हैं- १ बन्धन २ गति ३ संस्थान ४ भेद ५ वर्ष ६ गन्ध ७ रस ८ स्पर्श ६ अगुरुलघु और १० शब्द |
थोकडा संग्रह |
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१ बन्धन – स्निग्ध का बन्धन नहीं होवे, ( जैसे घी से घो नहीं बंदाय ) वैसे ही रुक्ष ( लूखा ) रुक्ष का बन्धन नहीं होवे (जैसे राख से राख तथा रेती से रेती नहीं बन्धाय ) परन्तु स्निग्ध और रुक्ष दोनों मिलने से बन्ध होता है ये भी आधा आधा ( सम प्रमाण में ) होवे तो बन्ध नहीं होवे विषम ( न्यूनाधिक ) प्रमाण में होवे तो बन्ध होवे; जैसे परमाणु परमाणु से नहीं बन्धाय परमाणु दो प्रदेशी आदि स्कन्ध से बन्धाय ।
२ गति - पुद्गलों की गति दो प्रकार की है, ( १ ) स्पर्श करते चले (जैसे पानी का रेला और ( २ ) स्पर्श किये बिना चले (जैसे आकाश में पक्षी )
३ संस्थान - (आकार) कम से कम दो प्रदेशी जाव अनन्ता परमाणु के स्कन्धों का कोई न कोई संस्थान होता
परिमंडल,
वह, 1 त्रिकोन
। इस के पांच भेद चोरस | आयतन
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