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________________ जीव परिणाम पद । ( ७२६ ) us.5/5 के जीव परिणाम पद के ( श्री एन्नवणा सूत्र, तेरहवां पद ) जिस परिणति से परिणमे उसे परिणाम कहते हैं। जैसे जीव स्वभाव से निर्मल, सच्चिदानन्द रूप है । तथापि पर प्रयोग से कषाय में परिणमन हो कर कषायी कहलाता है । इत्यादि । परिणाम दो प्रकार का है- १ जीव परिणाम २ अजीव परिणाम । १जीव परिणाम-१० प्रकार का है-गति,इन्द्रिय, कषाय, लश्या, योग, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वेद परिणम । विस्तार से गति के ४, इन्द्रिय के ५, कषाय के ४, लेश्या के ६, योग के ३, उपयोग के २ ( साकार ज्ञान और निराकार दर्शन ), ज्ञान के ८ (५ ज्ञान, अज्ञान), दर्शन के ३ ( सम-मिथ्या-मिश्र दृष्टि ), चारित्र के ७ (५ चारित्र, १ देश व्रत और अव्रत ), वेद के ३, एवं कुल ४५ बोल है । और समुच्चय जीव में १ अनेन्द्रिय २ अकषाय ३ अलेशी ४ अयोगी और ५ अवेदी । एवं ५ बोल मिलाने से ५० बोल हुवे । समुच्चय जीव एव ५० बोल पने परिणमते हैं। अब ये २४ दण्डक पर उतारे जाते हैं। (१) सात नारकी के दण्डक में २६ बोल पावे १ नरक गति, ५ इन्द्रिय ४ कपाय, ३ लेश्या, ३ योग, Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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