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________________ चरम पद। ( ७९२ से चरम द्रव्य असं व्य गुणा, उनसे चरमाचरम द्रव्य विशेष । __ प्रदेश का अल्प बहुत्व-सर्व से कम चरम प्रदेश, उनसे अचरम प्रदेश अनन्त गुणा,उनसे चरमाचरम प्रदेश विशेष । द्रव्य प्रदेश का अल्प बहुत्व-सर्व से कम अचरम द्रव्य, उनसे चरम द्रव्य असंख्य गुणा, उनसे चरमाचरम द्रव्य विशेष, उनसे चरम प्रदेश असंख्य गुणा, उनसे अचरम प्रदेश अनन्त गुणा, उनसे चरमाचरम प्रदेश विशेष । लोकालोक में चरमाचरम द्रव्य का अल्प बहुत्व सर्व से कम लोकालोक के चरम द्रव्य, उनसे लोक के चरम द्रव्य असंख्य गुणा, उन से अलोक के चरम द्रव्य विशेष, उनसे लोकालोक के चरमाचरम द्रव्य विशेष । लोकालोक में चरमाचरम प्रदेश का अल्प बहुत्व:सर्व से कम लोक के चरम प्रदेश, उनसे अलोक के चरम प्रदेश विशष, उन से लोक के अचरम प्रदेश असंख्य गुणा, उनसे अलोक के अचरम प्रदेश अनन्त गुणा, उन से लोकालोक के चरमाचरम प्रदेश विशेष । लोकालोक में द्रव्य-प्रदेश चरमाचरम का अल्प बहुत्व-सर्व से कम लोकालोक के चरम द्रव्य, उन से लोक के चरम द्रव्य असं० गुणा, उनसे अलोक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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