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________________ छ काय के बोल । (६१) त्रीक आती है। ये देवलोक गागर बेवड़े के समान हैं । इनके नामः-१ भद्र २ सुभद्र ३ सुजात, इस पहली त्रीक में १११ विमान हैं। यहां से असंख्यात योजन के करोड़ा करोड प्रमाणे ऊंचा जाने पर दूसरी त्रोक आती है । यह भी गागर बेवड़े के ( आकार ) समान है । इनके नाम ४ सुमानस ५ प्रिय दर्शन ६ सुदर्शन इस त्रीक में १०७ विमान हैं। यहां से असंख्यात योजन के करोड़ा करोड़ प्रमाणे ऊंचा जाने पर तीसरी त्रीक आती है, जो गागर बेवड़े के समान है। इनके नाम ७ अमाघ ८ सुप्रतिबुद्ध ह यशोधर इस त्रीक में १०० विमान हैं। पांच अनुत्तर विमान नवी ग्रीयवेक के ऊपर असंख्यात योजन की करोडा करोड प्रमाणे ऊंचा जाने पर पांच अनुत्तर विमान आते हैं। इनके नामः-१विजय २ विजयंत ३ जयंत ४ अपराजित ५ सवार्थ सिद्ध । ये सर्व मिल कर ८४, ६७,०२३ विमान हुवे । देव की स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष की, उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की। देव का "कुल"२६ लाख करोड़ जानना। सिद्ध शिला का वर्णन । सर्वार्थ सिद्ध विमान की ध्वजा पताका से १२ योजन ऊंचा जाने पर सिद्ध शिला पाती है। यह ४५ लाख योजन की लम्बी चौडी व गोल और मध्य में ८ योजन की जाडी, और चारों तरफ से कम से घटती २ किनारे पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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