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________________ ( ७१६) थोकडा संग्रह। खेताणु---वाई (श्रीपन्नवणा जी सूत्र, तीसरा पद) तीन लोका के ६ भेद (भाग) करके प्रत्यक भाग में कौन रहता है ? यह बताया जाता है। (१) ऊर्ध्व लोक ( ज्योतिषी देवता के ऊपर के तले से ऊपर ) में--१२ देवलोक, ३ किल्विषी, 8 लोकातिक, ६ ग्रीयवेक, ५ अनुत्तर विमान इन ३८ देवों के पर्याप्ता, अपर्याप्ता ( ७६ देव ) तथा मेरु की वापी अपेक्षा बादर तेऊ के पर्याप्ता, अपर्याप्ता सिवाय ४६ जाति के तिथंच होवे, एवं ७६+४६=१२२ भेद ( प्रकार) के जीव होते हैं। (२) अधो लोक ( मेरु की समभूमि से ६०० यो. जन नीचे तीछो लोक उससे नीचे ) में जीव के भेद ११५ हैं-७ नारकी के १४ भेद, १० भवनपति १५ परमाधामी के पर्या० अपर्या० एवं ५० देव, सलीलावति विजय अपेक्षा ( १ महाविदेह का पर्या० अपर्या० और समून मनुष्य ) ३ मनुष्य और ४८ तिथंच के भेद मिल कर १४ +५०+३+४८=११५ हैं। (३) तीर्खा लोक ( १८०० योजन ) में ३०३ मनुध्य, ४८ तिर्यंच और ७२ देव ( १६ व्यन र, १० जुभका १० ज्योतिषी इन ३६ केपर्या० अपर्या० ) कुल ४२३ भेद के जीव है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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