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________________ ( ५६८) थोकडा संग्रह। त्रयस्त्रिंशक ४ सामानिक ५ अहमिन्द्र । पुलाक, वकुश, पडि सेवण, प्रथम ४ पदवी में से १ पदवी पावे । कषाय कुशील ५ पदवी में से १ पावे, निग्रंथ अहमिन्द्र होवेस्नातक आराधक अहमिन्द्र होवे तथा मोक्ष जावे. विराधक ज० विरा० होवे तो ४ पदवी में से १ पदवी पावे० उ० वि० २४ एड क में भ्रमण करे। १४ संयम द्वार-संख्याता स्थान असंख्याता है। चार नियंठा में असंख्याता संयम स्थान और निग्रंथ, स्नातक में संयम स्थान एक ही होवे । सर्व से कम नि० स्ना०के सं० स्था० । उनसे पुलाक के सं० स्था० असंख्यात गुणा० उनसे वकुश के सं० स्था० असंख्यात गुणा, उनसे पडि सेवण सं० स्था० असंख्यात गुणा० उनसे कषाय कुशील का सं० स्था० असंख्यात गुणा । १५ निकासे-( संयम का पर्याय ) द्वार- सबों का चारित्र पर्याय अनन्ता अनन्ता, पुलाक से पुलाक का चारित्र पर्याय परस्पर छठाणवलिया । यथा . १ अनन्त भाग हानि, २ असंख्य भाग हानि, ३ संख्यात भाग हानि ।। ४ संख्यात भाग हानि ५ असंख्य भाग हानि ६ अनन्त भाग हानि। १ अनन्त ,, वृद्धि २,,, वृद्धि ३ संख्यात , वृद्धि ४ संख्यात,,,५ ,६ अनन्त " " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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