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________________ ( ५६६) थोकडा संग्रह । xxxmaa दोष) और उत्तर गुणपडि । ( गोचरी आदि में दोष ); पुलाक, ववश, पडिसेवण में मूल गुण, उत्तर गुण दोनों की पडि० शेष तीन नियंठा अपडिसेवी । (व्रतों में दोष न लगावे)। ७ ज्ञान द्वार-पुलाक, बकुश, पडिसेवण नियंठा में दो ज्ञान तथा तीन ज्ञान, कषाय कुशील और निग्रंथ में २.-३.-४ज्ञान और स्नातक में केवल ज्ञान । श्रुत ज्ञान अाश्रीपुलाक के ज० ६ पूर्व न्यून, उ०६ पूर्व पूर्ण, वकुश और पडिसत्रण के ज०८ प्रवचन । उ० दश पूर्व० कषाय कुशील तथा निग्रंथ के ज० ८ प्रवचन, उ० १४ पूर्व स्नातक सूत्र व्यतिरिक्त । ८ तीर्थ द्वार-पुलाक, वकुश, पडिसेवण तीर्थ में होवे । शेष तीन तीर्थ में और अर्थ में होवे । अतीर्थ में प्रत्येक बुद्ध आदि होवे । हलिंग द्वार-ये ६ नियंठा ( साधु ) द्रव्य लिंग अपेक्षा स्वलिंग, अन्य लिंग अपेक्षा गृहस्थ लिंग में होवे । भावापेक्षा स्वलिंग ही हो । १० शरीर द्वार पुलाक, निग्रंथ, और स्नातक में ३ (ो० ते. का०), वकुश, पडिसे० में ४ (औ० वै० तै० का०), कषाय कुशील में ५ शरीर। ११ क्षेत्र द्वार--६ नियंठा जन्म अपेक्षा १५ कर्मभूमि में होवे । संहरण अपेक्षा । ५ नियंठा (पुलाक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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