________________
षद्रव्य पर ३१ द्वार।
(५५६ )
है । इसी प्रकार अधर्मास्ति काय का संठाण, आकाशास्ति काय का संठाण लोक में गले का भूषण समान अलोक में अोषणाकार, जीव तथा पुद्गल का सम्बन्ध अनेक प्रकार का और काल के आकार नहीं । ( प्रदेश नहीं इस कारण )
४ द्रव्य द्वार-गुण पर्याय के समूह युका होवे उसे द्रव्य कहते हैं । हरेक द्रव्य के मून ६ स्वभाव हैं । अस्ति. त्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, सत्तत्व, अगुरुनघुत्व, उतर स्वभाव अनन्त हैं । यथा नास्तित्त, नित्य, अनित्य, एक, अनेक, भेद, अभेद, भव्य, अभव्य. वकाव्य, परम इत्यादि धर्म, अधर्म, आकाश, एक एक द्रव्य हैं । जोय, पुद्गल और काल अनन्त हैं।
५ क्षेत्र द्वार-धर्म, अधर्म, जीव और पुद्गल लोक व्यापक है । आकाश लोकालोक व्यापक है। और काल २॥ द्वीप में प्रवर्तन रूप है और उत्साद व्यय रूप से लोकालोक व्यापक है।
६ काल द्वार-धर्म, अधर्म, आकाश द्रव्यापेक्षा अनादि अनन्त हैं । क्रिया पेक्षा सादि सांत है । पुद्गन द्रव्यापेक्षा अनादि अनन्त है, प्रदेशापेक्षा सादि सांत है। काल द्रव्य द्रव्यापेक्षा अनादि अनन्त समयापेक्षा सादि सान्त है। - ७ भाव द्वार-पुद्गल रूपी है। शेष ५ द्रव्य अरूपी है।
८ सामान्य-विशेष द्वार सामान्य से विशेष वल.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org