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________________ ( ५१०) थोकडा संग्रह । योगों का अल्प बहुत्व ( श्री भगवती सूत्र शतक २५ उद्देश १ ला में) जीव के आत्म प्रदेशो में अध्यवसाय उत्पन्न होते हैं । अध्यवसाय से जीव शुभाशुभ कर्म (पुद्गल ) के ग्रहण करता है यह परिणाम हैं और यह सूक्ष्म हैं। परिणामों की प्रेरणा से लेश्या होती है । और लेश्या की प्रेरणा से मन, वचन, काय का योग होता है । योग दो प्रकार का १ जघन्य योगः-१४ जीवों के भेद में सामान्य याग संचार २ उत्कृष्ट योग, (तारतम्यता) अनुसार उनका अल्प बहुत्व नीचे अनुसार(१) सर्व से कम सूक्ष्म एकेन्द्रिय का अपर्याप्ता का ___ जघन्य योग उन से (२) बादर ऐकेन्द्रिय का अपर्याप्ता का जल्योग असं०गुणा, (३) बे इन्द्रिय (४) त इन्द्रिय " " " (५) चौरिन्द्रिय (६) असंज्ञी पंचेन्द्रिय का , ( ७ ) संज्ञी , " (८) सूक्ष्म एकेन्द्रिय का पर्याप्ता का (8) चादर " " (१०) सूक्ष्म , अपर्याप्ता का उ० योग maa Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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