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________________ व्यवहार समकित के ६७ बोल । ( ४६६ ) शासन की प्रभावना होती है ? अथवा इससे कितना लाभ ? इसका बुद्धिवान स्वयं विचार कर सकते । यदि प्रभावना से हमारा सच्चा अनुराग व प्रेम होवे तो छोटी २ तत्र ज्ञान की पुस्तकों को बांट कर प्रभावना करे कि जिससे अपने भाइयों को आत्म ज्ञान की प्राप्ति होवे | (६) आगार ६ - ( १ ) राजा का आगार (२) देवता का श्रगार. (३) जाति का आगार ( ४ ) माता पिता व गुरु का यागार ( ५ ) बलात्कार ( जबर्दस्ती ) का आगार (६) दुष्काल में सुख पूर्वक आजीविका नहीं चले तो इसका श्रागार | इन छे प्रकारों के आगार से कोई अनुचित कार्य करना पड़े तो समकित दूषित नहीं होता । (१०) जयना के ६ भेद: - ( १ ) आलाप - स्वधर्मी भाइयों के साथ एक वार बोले (२) संलाप - स्वधर्मी भाइयों के साथ वारंवार बोले ( ३ ) मुनि को दान देवे अथवा स्वधर्मी भाइयों की वात्सल्यता करे । ( ४ ) एवं वारंवार प्रतिदिन करे ( ५ ) गुणी जनों का गुण प्रगट करे ( ६ ) तथा वंदना नमस्कार बहु मान करे । (११) स्थानक के ६ प्रकार : - (१) धर्म रुपी नगर तथा समकित रुपी दरवाजा (२) धर्म रुपी वृक्ष तथा समकित रुपी धड़ (३) धर्म रुपी प्रासाद ( महल ) तथा समकित रुपी नींव (बुनियाद ) (४) धर्म रुपी भोजन तथा सम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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