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________________ आठ आत्मा का विवार । ( ४६३ ) इनका अल्प बहुत्व:- सर्व से कम चारित्र आत्मा उनसे ज्ञान आत्मा अनन्त गुणी । उनसे कषाय आत्मा अनन्त गुणी, उनसे योग आत्मा विशेषाधिक उनसे वीर्य आत्मा विशेषाधिक उनसे द्रव्य आत्मा तथा उपयोग अम तथा दर्शन आत्मा परस्पर तुल्य और ( वी. आ. से ) विशेषाधिक। यह सामान्य विचार हुवा । अब आठ आत्मा का विशेष विचार कहा जाता है www शिष्य- कृपालु गुरू ! श्रात्म द्रव्य एक ही शक्ति वाला तथा असंख्यात प्रदेशी सत् चिद् और आनन्दघन कहने में आता है । इसका निश्चय नय से क्या अभिप्राय हैं ? व्यवहार नय के मत से किस कारण से आत्मा आठ कही जाती है ? और वे श्रात्मा किन २ संयोग के साथ मिल कर गतागति करती है ? ये सर्व कृपा करके कहो । गुरु- हे शिष्य ! कारण केवल यही है कि शुद्ध आत्म द्रव्य में पांच ज्ञान, दो दर्शन तथा पांच चारित्र का समावेश होता है । ये सर्व आत्म शुद्धि के कारण अर्थात् साधन है । इनके अन्दर आत्मबल और आत्म वीर्य लगाने से कर्म मुक्त होती हैं जब कि सामने पक्ष में अर्थात् इसके विरूद्ध शुद्ध श्रात्म द्रव्य में पच्चीश कषाय, पन्द्रह योग, तीन अज्ञान और दो दर्शन का समावेश होता है । ये सर्व श्रात्मशुद्धि के कारण तथा साधन है । इनमें चल या वीर्य लगाने पर चार गतियों में परिभ्रमण करना पड़ता है । ऐसा होने पर प्रत्येक आत्मा भिन्न २ संयोगों के साथ मिलती है । जैसा कि इस यन्त्र में बताया गया है: For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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