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निवेदन
जैन साहित्य विशाल है। महान् हित साधक है । संसार की दावाग्नि से संतप्त जीवों को शान्ति पहुँचाने वाला है।
परन्तु वह अधिकांश प्राकृत (अर्धमागधी) और संस्कृत में है। जैन साहित्य में प्रवेश करने के वास्ते थोकड़ों का ज्ञान अनिवार्य आवश्यक है।
गुजराती साहित्य के सुपरिचित लेखक धीरज भाई ने परिश्रम पूर्वक थोकड़ों का संग्रह किया है। उनका और प्रकाशक महोदय का प्रयत्न स्तुत्य है।
युवाचार्य पं० मुनिश्री छगनलालजी म. ने उसका हिन्दी अनुवाद करना उपयोगी समझा । एतदर्थ हमने प्रकाशक महोदय से अनुमति माँगी। उन्होंने सहर्ष अनुमति दी । उनका आभार प्रदर्शन करते हुए अाज हम हिन्दी पाठकों के लाभार्थ यह स्तोक-संग्रह प्रकाशित कर रहे हैं। यदि इस से मुमुक्षों भव्य महानुभावों को कुछ लाभ पहुँचा तो हम अपने परिश्रम को सार्थक समझेंगे।
खलचीपुरा निवासी श्रीमान् मगनमलजी सा० कुदाल ने इस के संशोधन का परिश्रम उठाया इसलिये उनका आभार मानता हूँ।
मंत्री
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