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थोकड़ा संग्रह।
सुन कर श्रद्धा रखने वाले दोनों जीव वीतराग की आज्ञा के आराधक होते हैं । इस धर्म कथा-संवर रूप वृक्ष की सेवा करने से मन वान्छित सुख रुप फल की प्राप्ति होती है । संवर रूपी वृक्ष का वर्णन-जिस वृक्ष का समकित रुप मूल है, धैर्य रुप कन्द है, विनय रुप वेदिका है, तीर्थकर तथा चार तीथे के गुण कीतन रुप स्कन्ध है, पांच महाव्रत रुप बड़ी शाखा है, पच्चीश भावना रुप त्वचा है, शुभ ध्यान व शुभ योग रुप प्रधान पल्लव पत्र हैं, गुण रुप फूल है, शीयल रुप सुगन्ध है, आनन्द रुप रस है, और मोक्ष रुप प्रधान फल है । मेरु गिरि के शिखर पर जैसे चूलिका विराजमान है वैसे ही समकिती के हृदय में संवर रुपी वृक्ष विराजमान होता है। इस संवर रुपी वृक्ष की शीतल छाया जिसे प्राप्त होती है उस जीव के भवोभव के पाप टल जाते हैं और वह अतुल सुख प्राप्त करता है।
उक्त चार प्रकार की कथा विस्तार पूर्वक कहे उसे धर्म कथा कहते हैं। अक्षेवणी, विक्षेवणी, संवेगणी और निगणी आदि ४ कथाओं का विस्तार चोथे ठाणे दूसरे उद्देशे के अन्दर है।
धर्म ध्यान की चार अणुप्पेहा-जीव द्रव्य तथा अजीव द्रव्य का स्वभाव स्वरुप जानने के लिए सूत्र का अर्थ विस्तार पूर्वक चिंतवें उसे अणुप्पेहा कहते है।
१ अणुप्पेहा-एकच्चालुप्पेहा-मेरी आत्मा निश्चय
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