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________________ ४५० ) थोकडा संग्रह । खाकर दक्षिण सिवाय दिशाओं में जाने से भय की संभा वना रहती है । (५) पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के दो तारे हैं । इसका आकार अर्ध वाव्य के भाग समान है । इस योग पर करलेकी शाक खाकर चलने पर लड़ाई होवे परन्तु इससे ज्ञानवृद्धि की संभावना भी है । (६) उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र के दो तारे हैं। इसका आकार भी पूर्वा भाद्र पद समान होता है । इस में दांसकपूर ( वंशले चन ) खाकर पिछले पहर चलने से सुख होता है । यह नक्षत्र दीक्षा के योग्य है । ( ७ ) रेवती नक्षत्र के बत्तीश तारे हैं। इसका कार नाव समान है । इस के समय स्वच्छ जल का पान करके चलने से विजय मिलती है । ( ८ ) अश्वनी नक्षत्र के तीन तारे हैं। घोड़े के बन्ध जैसा आकार है । मटर ( वटले) की फली का शाक खाकर चलने से सुख शान्ति प्राप्त होती है । ( ६ ) भरणी नक्षत्र के तीन तारे हैं। और इसका आकार स्त्री के मर्मस्थान वत् है । तेल, चावत खा कर चलने पर सकलता मिलती है (१०) कृतिका नक्षत्र के छः तारे होते हैं । जिसका नाई की पेटी समान आकार होता है। गाय का दूध पीकर चलने पर सौभाग्य की वृद्धि होती है तथा सत्कार मिलता है । ( ११ ) रोहिणी नक्षत्र के पांच तारे होते हैं । व गाडे के ऊंटासमान इसका आकार होता है । इस समय हरे मूंग खा कर चलने पर मार्ग में यात्रा के योग्य सर्व सामग्री अल्प परिश्रम से प्राप्त हो जाती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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