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थोकडा संग्रह।
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नक्षत्र और विदेश गमन
शिष्य नमस्कार करके पूछता है कि हे गुरु ! नक्षत्र कितने ? तारे कितने ? इनका आकार कैसा ? वे नक्षत्र ज्ञान शक्ति बढ़ाने में क्या मददगार हैं ? उन नक्षत्र के समय विदेश गमन करने पर किस पदार्थ का उपभोग करके चलना चाहिये व उस से किस फल की प्राप्ति होती है ? गुरु-(एक साथ छः ही सवालों का जवाब देते हैं)
हे शिष्य ! नक्षत्र अठावीश है, जिन सबों के आकार अलग अलग हैं। ये आकार इन नक्षत्रों के ताराओं की संख्या के ऊपर से समझे जा सक्ते हैं। इन के आधार से स्वाध्याय, ध्यान करने वाले मुनि रात्रि की परसियों का. माप अनुमान कर आत्मस्मरण में प्रवृत्त हो सक्ते हैं। इन में से दश नक्षत्र ज्ञान शक्ति में वृद्धि करने वाले हैं । ज्ञान शक्ति वाले महात्मा अपने संयम की वृद्धि निमित तथा भव्य जीवों पर उपकार करने के लिए विदेश में विचरते हैं जिससे अनेक लाभ होने की संभावना है । अतः इन नक्षत्रों का विचार करके गमन करने पर धर्म वृद्धि का कारण होता है । यही नक्षत्रों का फल है । चलने के समय मिन्न भिन्न पदार्थों का उपभोग करने में आता है । उन पदार्थों के साथ मनोभावनाओं का रस मिल कर मिश्रित
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