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थोकड। संग्रह।
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सकते हैं ? क्या नहीं देख सक्ते । __ गर्भ का जीव माता के दुख से दुखी व सुख से सुखी होता है । माता के स्वभाव की छाया गर्भ पर गिरती है । गर्भ में से बाहर आने के बाद पुत्र पुत्री का स्वभाव, आचार, विचार आहार व्यवहार आदि सर्व माता के स्व. भावानुसार होता है । इस पर से माता पिता के ऊंच नीच गर्भ की तथा यश अपयश आदि की परीक्षा सन्तति रूप फोटू के ऊपर से विवेकी स्त्री पुरुष कर सक्ते हैं कारण कि सन्तति रूप चित्र (फोटू) माता पिता की प्रकृति अनुसार खिंचा हुवा होता है । माता धर्म ध्यान में, उपदेश श्रवण करने में तथा दान पुन्य करने में और उत्तम भावना भावने में संलग्न होवे तो गर्भ भी वैसे ही विचार वाला होता है । यदि इस समय गर्भ का मरण होवे तो वो मर कर देवलोक में जा सकता है। ऐसे ही यदि माता आत और रौद्र ध्यान में होवे तो गर्भ भी प्रात और रौद्र ध्यानी होता है । इस समय गर्भ की मृत्यु होने पर वो नरक में जाता है । माता यदि उस समय महाकपट में प्रवृत्त हो तो गर्भ उस समय मर कर तिर्यंच गति में जाता है। माता महा भद्रिक तथा प्रपञ्च रहित विचारों में लगी हुई होवे तो गर्भ मर कर मनुष्य गति में जाता है एवं गर्भ के अन्दर से ही जीव चारों गति में जा सकता है । गर्भ काल जब पूर्ण होता है तब माता तथा गर्भ की नाभी की
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