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गर्भ विचार ।
(४३७)
और मस्तक की ज ( भेजा ) ये तीन अङ्ग माता के हैं और हड्डी हाड़ की मज्जा और नख केश रोम ये तीन अङ्ग पिता के हैं । आठ महीने सर्व अङ्ग उपाङ्ग पूर्ण हो जाते हैं । इा गर्भ को लघु नीत बड़ी नीत श्लेष्म, उधरस, छक, अंगड़ाई प्रादि कुछ नहीं होता वो जिस २ प्राहार को खेचता है उस अहार का रस इन्द्रियों को पुष्ट करता है। बाड़, हाड़ की मज्जा, चरबी नख, केश की वृद्धि होती है। आहार लेने की दूसरी रीति यह है कि माता की तथा गर्भ की नाभि व ऊपर की रस हरणी नाडी ये दोनो पास्सर वाले (नहरू) के आटे के समान वींटे हुवे हैं । इसमें गर्भ की नाडी का मुंह माता की नामि में जुड़ा हुवा होता है । माता के कोठे में पहले जो आहार का कवल पड़ता है वो नाभि के पास अटक जाता है व इसका रस बनता है जिससे गर्भ अपनी जुड़ी हुई रसहरणी नाडी से खेंच कर पुष्ट होता है। शरीर के अन्दर ७२ कोठे हैं जिनमें से पांव बड़े हैं । शीयाले में दो कोठे आहार के और एक कोठा जल का व गर्मी में दो कोठे जल के और एक कोठा आहार का तथा चौमासे में दो कोठे आहार के और दो कोठे जल के माने जाते हैं । एक कोठा हमेशा खाली रहता है । स्त्री के छठा कोठा विशेष होता है । कि जिसमें गर्भ रहता है । पुरुष के दो कान, दो चक्षु दो नासिका (छेद ), मुंह, लघुनीत, बडी नीत
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