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थोकडा संग्रह।
कहे गुणवाला निकलता है। दिन का संयोग शास्त्र द्वारा निषेध है। इतने पर भी अगर होवे ( सन्तान ) तो वो कुटुम्ब की तथा व्यावहारिक सुख व धर्म की हानि करने वाला निकलता है।
गर्भ में पुत्र या पुत्री होने का कारणः-वीर्य के रज कण अधिक और रुधिर के थोड़े हो तो पुत्र रूप फल की प्राप्ति हाती है । रुधिर अधिक और वीर्य कम होवे तो पुत्री उत्पन्न होती है । दोनों समान परिमाण में होवे तो नपुसंक होता है । (अब इनका स्थान कहते हैं) माता के दाहिनी तरफ पुत्र, बांयी कुक्षि में पुत्री और दोनों कुक्षि के मध्य में नपुसंक के रहने का स्थान है । गर्भ की स्थिति मनुष्य गर्भ में उत्कृष्ट बारह वर्ष तक जीवित रह सक्ता है । बाद में मर जाता है । परन्तु शरीर रहता है, जो चौवीश वर्ष तक रह सक्ता है । इस सूखे शरीर के अन्दर चौवीशवें वर्ष नया जीव उत्पन्न होवे तो उसका जन्म अत्यन्त कठिनाई से होता है यदि नहीं जन्मे तो माता की मृत्यु होती है। संज्ञी तिर्यंच अाठ वर्ष तक गर्भ में जीवित रहता है । अब अाहार की रीति कहते हैं योनि काल में उत्पन्न होने वाला जीव प्रथम माता पिता के मिले हुवे मिश्र पुद्गलों का आहार करके उत्पन्न होता है इसका अथ प्रजा द्वार स जानना विशेष इतना है कि यह अाहार माता पिता का पुद्ग न कहलाता है । इस आहार
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