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________________ ( ३२) थोकडा मंग्रह । 8 इन्द्र नील रत्न १० चन्द्र नील रत्न ११ गेरुड़ी (गरुक) रत्न १२ हंस-गर्भ रत्न १३ पोलोक रत्न १४ सौगन्धिक रत्न १५ चन्द्र प्रभा रत्न १६ वेरुली रत्न १७ जल कान्त रत्न १८ सूर्य कान्त रत्न एवं सर्व ४७ प्रकार की पृथ्वी काय । इसके सिवाय पृथ्वी काय के और भी बहुत से भेद हैं। पृथ्वी काय के एक कंकर में असंख्यात जीव भगवंत ने सिद्धान्त में फरमाया है । एक पर्याप्ता की नेश्रा से असंख्यात अपर्याप्त है ! जो इन जीवों की दया पालेगा वह इस भव में व पर भव में निराबाध परम सुख पावेगा। ___पृथ्वी काय का आयुष्य जघन्य अन्तर्मुहूर्त का उत्कृष्ट नीचे लिखे अनुसार:-- कोमल मिट्टी का श्रायुष्य एक हजार वर्ष का । शुद्ध मिट्टी का आयुष्य बारह हजार वर्ष का । बालु रेत का आयुष्य चौदह हजार वर्ष का । मंन सिल का आयुष्य सोलह हजार वर्ष का । कंकरों का प्रायुष्य अट्ठारह हजार वर्ष का । वज्र हीरा तथा धातु का श्रायुष्यं बावीश हजार वर्षका । पृथ्वी काय का संस्थान मसुर की दाल के समान है। पृथ्वी काय का “कुल " बारह लाख केराड़ जानना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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