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________________ पुद्गल परावत । (३७६ ) क्रोड़ पल्य का एक सागर होता है । २० कोड़ा कोड़ सागरों का एक काल चक्र होता है । ॥ इति कालोपमा द्वार । ७ काल अल्प बहुत्व द्वारः-१ अनन्त काल चक्र जावे तब एक कार्मण पुद्गल परावर्त होवे । २ अनन्त कामण पुद्गल परावर्त्त जावे तब तैजस पुद्गल परावर्त होवे । ३ अनन्त तैजस पुद्गल परावर्त्त जावे तब एक औदारिक पुद्गल परावर्त्त हवे । ४ अनन्त औ० पु० परा० जावे तब एक श्वासोश्वास पुद्गल परावर्त होवे ५ अनन्त श्वा० पु० परा० जावे तब एक मन पुद्गल परा० होवे । ६ अनन्त मन पु० परा० जावे तब एक वचन पु० परा० होवे । ७ अनन्त वचन पु० परा० जावे तब एक वैक्रिय पु० परा० होवे । ॥ इति अल्प बहुत्व द्वार ॥ ८ पुद्गल मध्य पुद्गल परावर्त द्वारः-१ एक कार्मण पुद्गल परावर्त में अनन्त काल चक्र जावे । २ एक तैजस पुद्गल परा० में अनन्त कार्मण पु० परा० जावे ३ एक औदारिक पु० परा० में अनन्त तैजस् पु० परा० जावे ४ एक श्वासोश्वास पु० परा० में अनन्त औदारिक पु० परा० जावे ५ एक मन पु० परा० में अनन्त श्वासो पु० परा० जावे ६ एक वचन पु० परा० में अनन्त मन पु० परा० जावे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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