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बावन दोल।
(३४७ )
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२ असंज्ञी में--भाव ३, आत्मा ७, (चारित्र छोड़ कर ) लब्धि ५, वीर्य १ बाल वीर्य, दृष्टि २, भव्य अभव्य २ दण्डक २२, पक्ष २ ।
३नो संज्ञी नो असंही में-भाव ३, आत्मा ७, लब्धि ५, वीर्य १ पंडित, दृष्टि १ समकित दृष्टि, भव्य १, दण्डक १, पक्ष १ शुक्ल ।
२० भव्य द्वार ३ भेद १ भव्य में भाव ५, प्रात्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३ दृष्टि ३, भव्य १ दण्डक २४, पक्ष २ ।
२ अभव्य में-भाव ३, आत्मा ६, लब्धि ५, वीय १ बाल वीर्य, दृष्टि १ मिथ्यात्व, अभव्य १ दण्डक २४, पक्ष १ कृष्ण ।
३ नो भव्य नो अभव्य में-भाव २.क्षायक परिखामिक आत्मा ४ लब्धि नहीं, वीर्य नहीं, दृष्टि १ समकित, भव्य अभव्य नहीं, दण्डक नहीं, पक्ष नहीं।
२१ चरम द्वार के दो भेद १ चरम में-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३ दृष्टिं ३, भव्य २, दण्डक २४, पक्ष २।
२ * अचरम में-भाव ४ (उपशम छोड़ कर) आत्मा ७ ( चारित्र छोड़ कर) लब्धि ५, वीर्य १ बाल
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. * अचरम अर्थात् अभवी तथा सिद्ध भगवन्त ।
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