________________
बावन बोल ।
(३५३)
१० विभङ्ग ज्ञान म-भाव ३ (उदय, क्षयोपशम परिणामिक ), आत्मा ६ ( ज्ञान चारित्र छोड़ कर), लब्धि ५, वीर्य १ बाल वीर्य, दृष्टि १ मिथ्यात्व, भव्य अभव्य २, दण्डक १६ (पांच स्थावर तीन विकलेन्द्रिय छोड़ कर पक्ष २1
११ दर्शन द्वार के ४ भेद १ चक्षु दर्शन में भाव ५, अात्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३, दृष्टि ३, भव्य अभव्य २, दण्डक १७, पक्ष २ ।
२ अचच दर्शन में भाव ५, अात्मा ८, लब्धि ५, वीर्य ३. दृष्टि ३, भव्य अभव्य २, दण्डक २४, पक्ष २ ।
अवधि दर्शन में- भाव ५, श्रात्मा ८. लब्धि ५, वीर्य ३, दृष्टि ३, भव्य अभव्य २, दण्डक १६, पक्ष २ ।
केवल दर्शन में- भाव ३, आत्मा ७ (कषाय छोड़ कर ) लब्धि ५, वीर्य १ पलित, दृष्टि १ समकित, भव्य दण्डक १ मनुष्य का, पक्ष १ शुक्ल ।
१२ समुच्चय संयति का भेद १ संयति में-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य १ पंडित, दृष्टि १ समकित, भव्य १, दण्डक १, पक्ष १, शुक्ल ।
२ सामायिक चारित्र व छदोपस्थानिक चारित्र में:-भाव ५, आत्मा ८, लब्धि ५, वीर्य १ पंडित दृष्टि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org