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पांच इन्द्रिय ।
( ३०१ )
ड पांच इन्द्रियं
श्री प्रज्ञापना सूत्र के पन्द्रहवें पद के प्रथम उदेशे में पांच इन्द्रिय का विस्तार ११ द्वार के साथ कहा है । गाथा ( ११ द्वार )
संठाणं' बाहुल्लं' पोहत्तं' कइपएस उगाढे;
अप्पबहु पुठ' पविठे' विसय' अणगार" आहारे " पांच इन्द्रिय
१ श्रोत्रेन्द्रिय २ चतु इन्द्रिय ३ घ्राणेन्द्रिय ४ रसेन्द्रिय ५ स्पर्शेन्द्रिय |
१ संस्थान द्वार:- १ श्रोत्रेन्द्रिय का संस्थान (आकार) कदम्ब वृक्ष के फूल समान २ चतु इन्द्रिय का संस्थान मसूर की दाल समान ३ घ्राणेन्द्रिय का संस्थान धमण समान ४ रसेन्द्रिय का संस्थान छूपना की धार समान ५ स्पर्शेन्द्रिय का संस्थान नाना प्रकार का ।
२ बाहुल्य (जाड़ पना ) द्वार
पांच इन्द्रिय का बाहुल्य जवन्य उत्कृष्ट अङ्गुल के श्रसंख्यातवें भाग का |
३ पृथुत्व ( लम्बाई) द्वार
१ श्रोत्र २ चक्षु और ३ घ्राण । इन तीन इन्द्रियों की लम्बाई जघन्य उत्कृष्ट श्राङ्गुल के असंख्यातवें भाग
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