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________________ पांच शरीर । ( २६६ ) द्वीप तक जानेका (गमन करने का )२ वैक्रिय शरीर का विषय असंख्य द्वीप समुद्र तक जानेका ३ पाहारिक शरीर का विषय अढाई द्वीप समुद्र तक जाने का ४ तैजस कार्मण का विषय सर्व लोक में जाने का । ५ स्थिति द्वार। औदारिक शरीर की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट तीन पल्योपम की २ वैक्रिय शरीर की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की, उत्कृष्ट ३३ सागरोपम की ३ आहारिक शरीर की अन्तर्मुहूर्त की ४ तैजस कार्मण शरीर की स्थिति दो प्रकार की-अभव्य आश्री आदि अन्त रहित २ मोक्ष गामी आश्री अनादि सान्त ( आदि नहीं परन्तु अन्त है)। १६ अन्तर द्वार। औदारिक शरीर छोड़ कर फिर औदारिक शरीर प्राप्त करने में अन्तर पड़े तो जघन्य अन्तर्मुहूर्त व उत्कृष्ट ३३ सागरोपम २ वैक्रिय शरीर छोड़ कर फिर वैक्रिय शरीर पाने में अन्तर पड़े तो जघन्य अन्तर्मुहूर्ते उत्कृष्ट अनन्त काल ३ पाहारिक शरीर में अन्तर पड़े तो जघन्य अन्तर्मुहूर्त उत्कृष्ट अर्ध पुद्गल परावर्तन काल से कुछ न्यून ४..५ तेजस, कार्मण शरीर में अन्तर नहीं पड़े अन्तर द्वार का दूसरा अर्थ-पाहारिक शरीर को छोड़ शेष शरीर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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