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इसके १२ भेद - १ अनशन २ उनोदरि ३ वृत्ति संक्षेप ( भिक्षाचारि ) ४ रस परित्याग ५ कायक्लेश ६ प्रति संलीनता । ( यह छ बाह्य तप ) ७ प्रायश्चित ८ विनय वैयावृत्य १० स्वाध्याय ११ ध्यान 8 १२ कायोत्सर्ग । (यह छः अभ्यन्तर तप )
इन बारह प्रकार के तप को जान कर जो इन्हें श्रादरेगा वह इस भव में व परभव में निराबाध परम सुख पायेगा ।
॥ इतेि निर्जरा तत्त्व ॥
थोकडा संग्रह |
८बन्ध तत्र के लक्षण तथा मेद ||
क्षीर नीर, धातु मृत्तिका, पुष्प-अतर, तिल- तेल इत्यादि की तरह श्रात्मा के प्रदेश तथा कर्मों के पुद्गल का परस्पर सम्बन्ध होने को बन्ध तत्व कहते हैं ।
बन्ध के चार भेद - १ प्रकृति बन्ध - आठ कर्मों का स्वभाव २ स्थिति बन्ध-आठों कर्मों के रहने के समय का मान ३ कर्मों के तीव्र मंदादिक रस सो अनुभाग बन्ध ४ कर्म पुद्गल के दल जो आत्मा के प्रदेश के साथ बन्धे हुवे हैं, वे प्रदेश बन्ध । यह चार प्रकार का बन्ध का स्वरुप मोदक के दृष्टान्त के समान है । जैसे कई प्रकार के द्रव्यों के संयोग से बना हुवा मोदक (लड्डू ) की
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