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पांच ज्ञान का विवेचन ।
( २६७ )
( चारों तरफ ) संख्याता योजन तक जाने देखे । पूर्वोक्त दीप प्रमुख भाजन मस्तक पर रख कर चलने से जैसे चारों ओर दिखाई दे उसी प्रकार इस ज्ञान से भी चारों ओर देखे जाने ।
२ अनानुगामिक अवधि ज्ञान:-जिस स्थान पर अवधि ज्ञान उत्पन्न हुवा हो उसी स्थान पर रह कर जाने देखे अन्यत्र यदि वो पुरुष चला जावे तो नहीं देखे जाने । यह चारों दिशाओं में संख्यात असंख्यात योजन संलग्न तथा असंलग्न रह कर जाने देखे, जैसे किसी पुरुष ने दीप प्रमुख अग्नि का भाजन व मणि प्रमुख किसी स्थान पर रक्खा होवे तो केवल उसी स्थान प्रति चारों तरफ देखे परन्तु अन्यत्र न देखे उसी प्रकार अनानुगामिक अवधि
ज्ञान जानना ।
३ बर्द्धमानक अवधि ज्ञान:- प्रशस्त लेश्या के अवसाय के कारण व विशुद्ध चारित्र के परिणाम द्वारा सर्व प्रकारे अवधि ज्ञान की वृद्धि होवे उसे बर्द्धमानक अवधि ज्ञान कहते हैं, जघन्य से सूक्ष्म निगोदिया जीव तीन समय उत्पन्न होने में शरीर की जो अवगाहना बांधी होवे उतना ही क्षेत्र जाने उत्कृष्ट सर्व अशि का जीव, सूक्ष्म, बादर, पर्याप्त, अपर्याप्त एवं चार जाति के जीव, इनमें वे भी जिस समय में उत्कृष्ट होवे उन अनि के जीवों को एकेक श्राकाश प्रदेश में अन्तर रहित रखने से जितने अलोक में
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