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________________ पांच ज्ञान का विवेचन । (२५१ ) २ श्रुत ज्ञान के दो भेद १सामान्य २ विशषः-१ सामान्य प्रकार का श्रुत सो श्रुत कहलाता है और २ विशेष प्रकार का श्रुत सो श्रुत ज्ञान या श्रुत अज्ञान:--सम्यक् दृष्टि का श्रुत--सो श्रुत ज्ञान और मिथ्या दृष्टि का श्रुत सो श्रत अज्ञान १ मति ज्ञान २ श्रुत ज्ञान ये दोनों ज्ञान अन्योअन्य परस्पर एक दूसरे में क्षीर नीर समान मिले रहते हैं । जीव और अभ्यन्तर शरीर के समान दोनों ज्ञान जब साथ होते हैं तबभी पहेले मति ज्ञान और फिर श्रुत ज्ञान होता है । जीव मति के द्वारा जाने सो मति ज्ञान और श्रुत के द्वारे जाने सो श्रुत ज्ञान:-- मति ज्ञान का वर्णन:-- मति ज्ञान के दो भेदः-- श्रुत निश्रीत-सुने हुवे वचनों के अनुसारे मति फैलावे। २ अश्रुत निश्रीत जो नहीं सुना व नहीं देखा हो तो भी उसमें अपनी मति (बुद्धि) फैलावे । अश्रुत निश्रीत के चार भेद १ औत्पातिका २ वैनायिका ३ कार्मिका ४ पारिणामिका। औत्पातिका वुद्धिजो पहिले नहीं देखा हो व न सुना हो उसमें एक दम विशुद्ध अर्थग्राही बुद्धि उत्पन्न हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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