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( २४२)
थोकडा संग्रह।
पुरुषों का [हितैषी-मित्र आदि ] दिल फेरे तथा राजा को राज्य कर्तव्य से च्युत करे तो महा मोहनीय ।
११ स्त्री आदि गृद्ध होकर, विवाहित होने पर भी [मैं कुंवारा हूं] कुमारपने का विरुद धरावे तो महा मोहनीय।
१२ गायों [ गौवें ] के अन्दर गर्दभ समान स्त्री के विषय में गृद्ध हो कर आत्मा का अहित करने बाला माया मृषा बोले अब्रह्मचारी होने पर भी ब्रह्मचारी का विरुद [रूप ] धरावे तो महा मोहनीय [ कारण लोक में धर्म पर अविश्वास होवे, धर्मी पर प्रतीत न रहे ]
१३ जिसके आश्रय से आजीविका करें उसी आश्रय दाता की लक्ष्मी में लुब्ध होकर उसकी लक्ष्मी लूटे तथा अन्य से लुटावे तो महा मोहनीय ।
१४ जिसकी दरिद्रता दर करके ऊंच पद पर जिस को किया वो पुरुष ऊंच पद पाकर पश्चात ईष्यों द्वेष से व कलुषित चित्त से उपकारी पुरुष पर विपति डाले तथा धन प्रमुख की प्रामद में अन्तराय डाले तो महा मोहनीय।
१५ अपना पालन पोषण करने वाले राजा, प्रधान प्रमुख तथा ज्ञानादि देने वाले गुरु आदि को मारे तो महा मोहनीय ।
१६ देश का राजा, व्यापारी वृन्द का प्रवर्तक
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