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( २२८)
थोकडा संग्रह।
अतिथि, कृपण, रंक प्रमुख द्विपद तथा चतुष्पद को अन्तराय नहीं लगे, इस तरह से लेवे । तथा एक मनुष्य जिमता ( भोजन करता) होवे व एक के निमित्त भोजन तैयार किया होवे वो आहार लेवे । दो के भोजन करने में से देव तो नहीं लेवे तीन,चार, पांच आदि भोजन करने को बैठे हुवे उसमें से देवे तो न लेवे; गर्भवन्ती निमित्त उत्पन्न किया होवे वो न लेवे तथा नव प्रसूती का आहार नहीं लेवे,बालक को दूध पिलाते होवे उसके हाथ से नहीं लेवे, तथा एक पांव डेवड़ी के बाहर और एक पांच डेवड़ी के अन्दर रख कर वहेरावे तो लेवे, नहीं तो नहीं लेवे।
३ प्रतिमा धारी साधु को तीन काल गौचरी के कहे हैं-आदिम, मध्यम, चरम ( अन्त का ) चरम अर्थात् एक दिन के तीन भाग करे पहले भाग में गौचरी जावे तो दूसरे दो भाग में नहीं जावे इसी प्रकार तीनों में जानना।
४ प्रतिमा धारी साधु को छः प्रकार की गौचरी करना कही है १ सन्दूक के आकार समान ( चौखुनी) २ अर्ध सन्दुक के आकार ( दो पंक्ति ) ३ बलद के मूत्र आकार ४ पतङ्ग टीड़ उड़े उस समान अन्तर २ से करे ५ शंख के आवत्तेन के समान गौचरी करे ६ जावता तथा श्रावता गौचरी करे।
५ प्रतिमा धारी साधु जिस गांव में जावे वहां यदि यह जानते होवे कि यह प्रतिमा धारी साधु है तो एक रात्रि
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