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बुद्धि रखना व श्रहङ्कार - मद नहीं करना ) ५ लाघव - ( अन्य उपकरण - साधन रखना ) ६ सत्य ( सत्यताप्रमाणिकता से वर्तना) ७ संयम ( शरीर - इन्द्रिय आदि को नियमित रखना) = तप ( शरीर दुर्बल होवे इससे उपवासादि तप करना ) ६ चैत्य - ( दूसरों को उपकार बुद्धि से ज्ञानादि देना ) १० ब्रह्मचर्य ( शुद्ध आचारनिर्मल पवित्र वृत्ति में रहना ) दश प्रकारकी सामाचारी - १ आवश्यं स्थानक से बाहर जाना हो तो गुरु आदि को कहना कि अवश्य करके मुझे जाना है २ निषेधिक-स्थानक में आना हो तो कहना कि निश्चय कार्य कर के मैं आया हूँ ३ आपूच्छनाअपने को कार्य होवे तब गुरु को पूछना, ४ प्रति पूछना दुसरे साधुओं का कार्य होवे तत्र वारंवार गुरु को जतलाने के लिये पूछना ५ छंदना - गुरु अथवा बड़ों को अपने पास की वस्तु आमंत्रण करना ६ इच्छाकार - गुरु तथा बड़ों को कहना " हे पूज्य ! सूत्रार्थ ज्ञान देने के लिये आपकी इच्छा है ? " ७ निध्याकार - पाप लगा हो तो गुरु के समीप मिथ्या कहकर क्षमा याचना करना ( अर्थात् प्रायश्चित लेना ) ८ तथ्यकार - गुरु कथन प्रति कहे कि आप कहो वैसा ही करूंगा। अभ्युत्थान- गुरु तथा बड़ों के आने पर सात आठ पांव सामने जाना वैसे ही जाने पर सात आठ पांव पहुँचाने को जाना १० उपसंपद
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पतास बाल ।
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