________________
श्रीगुणस्थान द्वार।
(२२१ )
४, ५, ६, १३, एवं ५ शाश्वता शेष ६ गुण० अशाश्वता ।
नववा संघयण द्वार:-१४ गुण० में १, २, ३, ४, ५, ६, ७, एवं सात गुण० ६ संघयण ( संहनन ) आठवें से चौदहवें गण० तक एक वज्र, ऋषभ, नाराच संघयण ( संहनन )।
दशवां साहारण द्वार:-प्रार्याजी,अवेदी, परिहारविशुद्र चारित्र वंत, पुलाक लब्धिवन्त, अप्रमादी साधु, चौदह पूर्व धारी साधु और आहारिक शरीर एवं सात का देवता साहारण नहीं कर सके ।
॥क्षेपक द्वार समाप्त ॥
ॐ इति गुणस्थानक द्वार सम्पूर्ण
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org