SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ११ ) इस भव में व पर भव में निराबाध सुखों की प्राप्ति होवेगी । ॥ इति पुन्य तत्व ॥ नव तत्त्व | (४) पाप तत्व के लक्षण तथा भेद. पाप तवः - जो अशुभ करणी से, अशुभ कर्म के उदय से, अशुभ, मेला पुद्गल का बंध पड़े व जिसके फल भोगते समय आत्मा को कड़वे लगे उसे पाप तच्च कहते हैं । पाप के १८ भेद:- १ प्राणातिपात २ मृषावाद ३ अदत्तादान ४ मैथुन ५ परिग्रह ६ क्रोध ७ मान माया है लोभ १० राग ११ द्वेष १२ क्लेश १३ अभ्याख्यान १४ पैशुन्य १५ परपरिवाद १६ रति अरति १७ माया मृषा १८ मिथ्या दर्शन शल्य इन १८ भेद प्रकार से जीव पाप उपार्जन करता है वह ८२ प्रकार से भोगता है । ८२ प्रकार से भोगे जाते हैं-१ मति ज्ञानावरणीय २ श्रुत ज्ञानावरणीय ३ अवधि ज्ञानावरणीय ४ मनः पर्यव ज्ञानावरणीय ५ केवल ज्ञानावरणीय ६ निद्रा ७ निद्रानिद्रा ८ प्रचला ६ प्रचला प्रचला १० थिद्धि निद्रा ११ चक्षु दर्शनावरणीय १२ अचक्षु दर्शनावरणीय १३ अवधि दर्शनावरणीय १४ केवल दर्शनावरणीय १५ अशाता वेदनीय १६ मिथ्यात्व मोहनीय १७ अनंतानु For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International -
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy