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श्रीगुणस्थान द्वार।
( २१७)
१ दशन मोहनीय, १ चारित्र मोहनीय, ४ आयुष्य, २ नाम, २ गोत्र, ५ अन्तराय एवं ३७ प्रकृति का क्षय करे उसे क्षायक भाव कहते हैं ये 8 बोल पावे ।
१क्षायक समकित २ क्षायक यथाख्यात चारित्र ३ केवल ज्ञान ४ केवल दर्शन और क्षायक दानादि पांच लब्धि एवंह बोल ।
क्षयोपशम भाव में ३० बोलः-(प्रथम ) ४ ज्ञान, ३अज्ञान, ३ दर्शन, ३दृष्टि, ४ चारित्र १ (प्रथम) चरित्ता चरित्त (श्रावक पना पावे) १ आचार्यगणि की पदवी. १ चौदह पूर्व ज्ञान की प्राप्ति, ५ इन्द्रिय लब्धि, ५ दानादि लब्धि एवं सई ३० बोल । __ परिणामिक भाव के दो भेदः-१ सादि परिणामिक २ अनादि परिणामिक । सादि नष्ट होवे अनादि नहीं। सादि परिणामिक के अनेक भेद हैं-पुगनी सुरा, (मदिरा) पुराना गुड़, तंदुल आदि ७३ बोल होते हैं शाख भगवती सूत्र की अनादि परिणामिक के १० मेदः-धर्मा. स्ति काय २ अधमास्ति काय ३ आकाशास्ति काय ४ पुद्गलास्ति काय ५ जीवास्ति काय ६ काल ७ लोक ८ अलोक ६ भव्य १० अभव्य एवं १० ।
सन्नि वाइ भाव के २६ भांगे। १० द्विक संयोगी के १० त्रिक संयोगी के, ५ चौक संयोगी के, १ पंच संयो.
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