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________________ श्रीगुणस्थान द्वार । (२०६) ranwwwwwram PUNAVINAANANnni. कर ) वेदे और ७ कर्म का उदय । तेरहवें चौदहवें गुण० ४ कर्म वेदे और ४ कर्म का उदय-वेदनीय,आयुष्य, नाम और गोत्र। ६उदीरणा द्वार __पहेले गुणसे सातवें गुणतक ८ कर्म की उदीरणा तथा सात की ( आयुष्य कर्म छोड़ कर ) पाठवें, नववें गुण० ७ कर्म की उदीरण (आयुष्य छोड कर ) तथा ६ कम की ( आयुष्य मोहनीय छोड कर ) दशवे गुण०६ की करे ऊपर समान तथा ५ की करे ( आयुष्य मोहनीय वेदनीय छोड कर ) इग्यारहवें बारहवें गुण० ५ कम की ( ऊपर समान ) तथा २ कर्म की करे- नाम और गोत्र कर्मी । तेरहवें गुण० २ कर्म की उदीरणा-नाम, गोत्र । चौदहवे गुण ० उदीरणा नहीं करे । १० निर्जरा द्वार पहेले से इग्यारहवें गुण ० तक ८ कर्म की निर्जरा बारहवे ७ कर्म की निर्जरा ( मोहनीय कर्म छोड़ कर ) तेरहवें चौदहवें गुण० ४ कर्म की निर्जरा-वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र । ११ भाव द्वार, १ उदय भाव २ उपशम भाव ३ क्षायक भाव ४ क्षयोपशम भाव ५ परिणामिक भाव ६ संनिवाइ भाव । पहले तीसरे गुण०३ भाव-उदय, क्षयोपशम, परिणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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