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थोकडा संग्रह।
बोल में से सयोगी, सलेशी, शुक्ल लेशी, एवं तीन बोल छोड़ शेष ७ बोल सहित सर्व पर्वतों का राजा मेरु के समान अडोल, अचल, स्थिर अवस्था को प्राप्त होवे । शैलेशी पूर्वक रह कर पंच लघु अक्षर के उच्चार प्रमाण काल तक रह कर शेष वेदनीय, आयुष्य, नाम गोत्र एवं ४ कर्म क्षीण करके मोक्ष पावे । शरीर औदारिक तेजस्, कर्मण सर्वथा प्रकारे छोड़ कर समश्रेणी रजु गति अन्य
आकाश प्रदेश को नहीं अवगाहता हुवा अणफरसता हुवा एक समय मात्र में उर्द्धगति अविग्रह गति से वहां जाकर एरंड बीज बंधन मुक्त वत् निलेप तुम्बीवत, कोदंड मुक्त बाण वत्, इन्धन वह्नि मुक्त धूम्र वत् । उस सिद्ध क्षेत्र में जाकर साकारोपयोग से सिद्ध होवे, बुद्ध होवे, परांगत होवे परंपरांगत होवे सफल कार्य अर्थ साध कर कृत कृतार्थ निष्ठितार्थ अतुल सुख सागर निमग्न सादि अनन्त भागे सिद्ध होवे। इस सिद्ध पद का भाव स्मरण चिंतन मनन सदा सर्वदा काले मुझको होवे ? वो घडी पल धन्य सफल होवे । अयोगी अर्थात् योग रहित केवल सहित विचरे उसे अयोगी केवली गुणस्थान कहते है ।
३ स्थिति द्वार पहेले गुण स्थान की स्थिति ३ प्रकार की-अणादिया अपञ्जव सिया याने जिस मिथ्यात्व की आदि नहीं और अन्त भी नहीं । अभव्य जीव के मिथ्यात्व आश्री।
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