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थोकडा संग्रह ।
VAALAVANA
सर्वथा ढांके [छिगवे] , भस्म [ राख] से दबी हुई अग्निवत इस जीव को किस गुण की उत्पति होवे [ उत्तर] यह जीव जीवादिक नव पदार्थ द्रव्य से क्षेत्र से, काल से, भाव से, नोकारसी आदि छमासी तप वीतराग भाव से, यथाख्यात चारित्र पूर्वक जाने, सर्दहे, परुपे, फरसे, इतने में यदि काल करे तो अनुत्तर विमान में जावे फिर मनुव्य होकर मोक्ष जावे और यदि [ काल नहीं करे और ] सूक्ष्म लोम का उदय होवे तो कपाय रुप अग्नि प्रकट हो कर दशवें गुणस्थान परसे गिरता हुवा यावत् पहेले गुणस्थान तक चला आवे [ इग्यारहवें गुणस्थान से आगे चढ़े नहीं ] सर्वथा प्रकारे मोह का उपशम करना [जल से बुझाई हुई अग्नि वत् नहीं परन्तु ] भस्म से दबी हुई अग्नि वत् । उसे उपशान्त मोहनीय गुणस्थान कहते हैं।
१२ क्षीण मोहनीन गणस्थान:-उपरोक्त २८ प्रकृतियों को सर्वथा प्रकारे खपाचे क्षपक श्रेणी, चायक भाव, क्षायक समाति, क्षायक यथाख्यात चारित्र, करण सत्य, योग सत्य, भाव सत्य, अमायी, अकषायी, वीतरागी, भाव निग्रंथ, संपूर्ण संबुड. (नर्विते ) संपूर्ण भावि. तात्मा, महा तपस्वी महासुशाल, अमोही अधिकारी, महाज्ञानी महा ध्यानी, वर्द्धमान परिणामी, अपडिवाइ होकर अन्तर्मुहूर्त रहे । इस गुणस्थान पर काल करते नहीं व पुनर्भव होता नहीं । अन्त समय में पांच ज्ञानावरणीय, नव दर्शनावर
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