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श्रीगुणस्थान द्वार।
( १९५)
गंभीर होता है और फिर थोडी सी झनकार शेष रह जाती है उसी प्रकार गहेर गंभीर शब्द के समान समकित और झनकार समान मिथ्यात्व ।
तीसरा दृष्टान्तः-जीव रूपी आम्र वृक्ष, प्रमाण रूप शाखा, समकित रूप फल, मोहरूप हवा चलने से प्रमाण रूप डाल से समकित रूप फल टूट कर पृथ्वी पर गिरा परन्तु मिथ्यात्व रूप पृथ्वी पर फल गिरा नहीं अभी बीचमें ही है इस समय तक (जब तक वो बीच में है ) सास्वादान गुणस्थान रहता है और जब पृथ्वी पर गिर पड़ा तब मिथ्यात्व गुणस्थान । गौतम खामी हाथ जोडी मान मोडी श्री भगवंत को पूछने लगे " स्वामी नाथ ! इस जीव को कौन से गुणों की प्राप्ति होवे" तब श्री भगवंत ने फर माया कि यह जीव कृष्ण पक्षी का शुक्ल पक्षी हुवा व इसे अर्द्ध पुद्गल परावर्तन काल ही केवल संसार में परिभ्रमण करना शेष रहा। जैसे किसी जीव को एक लाख करोड रूपे देना हो और उसने उसमें से सब ऋण चुका दिया हो केवल अधेली (आधा रूपया) देनी शेष रही हो इसी प्रकार इस जीव को आधे रूपे कर्ज के समान संसार में परिभ्रमण करना शेष रहा । सास्वादान समकित पांच वार आवें।
तीसरे गुणस्थान का लक्षण:-सम्यक्त्व और मिथ्यात्व इन दो के मिश्र से मिश्र गुणस्थान बनता है इस
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