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श्रीमुणस्थान द्वार।
( १९३)
* श्रीगुणस्थान द्वार
. गाथा
नाम, लखण, गुण ठिइ, किरिया, सत्ता, बंध, वेदेय, । उदय, उदिरणा, चव, निज्जरा, भाव, कारणा ॥१॥ परिसह, मग, आयाय, जीवाय भेदे, जोग, उविउग, । लेस्सा, चरण, सम्मतं, आया बहुच्च, गुणठाणेहि, ॥२॥
(१) नाम द्वार १ मिथ्यात्व गुणस्थान २ सास्वादान गु० ३ मिश्र गु० ४ अवती सम्यक्त्व दृष्टि गु० ५ देशवती गु०६ प्रमत्त संजति (संयति) गु० ७ अप्रमत्त संजति गु० ८ नियहि (निवर्ती ) बादर गु० ६ अनियट्टि (अनिवर्ती ) बादर गु० १० सूक्ष्म संपराय गु० ११ उपशान्त मोहनीय गु० १२ क्षीण मोहनीय गु० १३ सजोगी केवली गु०१४ अजोगी केवली गु०।
(२) लक्षण द्वार १मिथ्यात्व गुणस्थान का लक्षण-श्री वीतराग के वचनों को कम, ज्यादा, विपरीत श्रद्धे ( सर्दहे) परुपे फरसे उसे मिथ्यात्व गु० कहते हैं। जैसे कोई कहे कि जीव अंगुठे समान है, तंडुल समान है, शामा (तिल) समान है दीपक समान है, आदि ऐसी परुपना कम (ओ.
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