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गता गति द्वार ।
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का पर्याप्त। । गति ४० बोल की-१५ कर्म भूमि ५ संज्ञी तिथंच इन वीश का पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता एवं ४०।
(२) दूसरी नरक में वीश बोल की आगति १५ कर्म भूमि, ५ संज्ञी तिर्यच एवं २० का पर्याप्ता । गति ४० बोल की पहली नरक समान ।।
(३) तीसरी नरक में उन्नीश बोल की आगति उक्त दूसरी नरक के २० बोल में से भुजपर ( सर्प) को छोड़ शेष उन्नीश । गति ४० की ऊपर समान ।
(४)चौथी नरक में अठारह बोल की आगति उक्त २० बोल में से १ भुजपर ( सर्प ) तथा २ खेचर छोड शेष १८ बोल गति ४० की ऊपर समान ।
(५) पांचवी नरक में १७ बोल की आगति उक्त २० बोल में से १ भुज पर (सर्प) २ खेचर ३ स्थल चर ये तीन छोड़ शेष १७ बोल । गति ४० की पहेली नरक समान ।
(६) छट्ठी नरक में १६ बोल की आगति उक्त २. बोल में से १ भुजपर ( सपे ) २ खेचर ३ स्थल चर ४ उर पर सपे चार छोड़ शेष १६ बोल । गति ४० बोल की पहेली नरक समान।
(७) सातवीं नरक में १६ बोल की आगति पन्द्रह कर्म * नेरिये और देवता काल कर के मनुष्य तथा तिर्यच में उत्पन्न होते है। ये अपर्याप्त अवस्था में नहीं भरते अतः इस अपेक्षा से कोई केवल पर्याप्ता ही मानते है।
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