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________________ ( १२१ ) चोवीस दण्डक । वचन योग ६ असत्य वचन योग ७ मिश्र वचन योग ८ व्यवहार वचन योग है औदारिक शरीर काय योग १० औदारिक मिश्र शरीर काय योग ११ कार्मण शरीर काय योग । १७ उपयोग द्वार * पांच देव कुरु, पांच उत्तर कुरु में उपयोग ६१ मति ज्ञान २ श्रुत ज्ञान ३ मति अज्ञान ४ श्रुत अज्ञान ५ चक्षु दर्शन ६ अचक्षु दर्शन । शेष वीश अकर्म भूमि व छप्पन्न अन्तर द्वीप में उपयोग ४: - १ मति अज्ञान २ श्रुत अज्ञान ३ चतु दर्शन ४ अचक्षु दर्शन । १८ आहार द्वार युगलियों में आहार तीन प्रकार का । १६ उत्पत्ति द्वार व २२ चवन द्वार तीश अकर्म भूमि में दो दण्डक का आवे १ मनुष्य २ तिर्यच और १३ दण्डक में जावेदश भवन पति के दश दण्डक, एक वाण व्यन्तर का एक ज्योतिषी का, एक वैमानिक का - एवं तेरह दण्डक । " छप्पन्न अन्तर द्वीप में दो दण्डक का वे मनुष्य और तिर्यच और इग्यारह दण्डक में जावे १० भवन पति और एक वाण व्यन्तर एवं इग्यारह में जावे । * ३० कर्म भूमि में ६ उपयोग (२ ज्ञान, २ अज्ञान, २ दर्शन ) और ५६ अन्तर द्वीप में ४ उपयोग ( २ अज्ञान, २ दर्शन ) ही होते हैं ऐसा अन्य ग्रंथो में वर्णन है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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