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उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन * ५५ *
चालीसवें अध्याय में धूम्र का विस्तार से वर्णन है। सूत्रकृतांग में धूपन और धूम्रपान दोनों का निषेध है। ‘विनयपिटक' के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि बौद्ध भिक्षु धूम्रपान करने लगे थे तब तथागत बुद्ध ने उन्हें धूम्रनेत्र की अनुमति दी।६० उसके पश्चात् भिक्षु स्वर्ण, रौप्य आदि के धूम्रनेत्र रखने लगे।६५ इससे यह स्पष्ट है कि भिक्षु और संन्यासियों में धूम्रपान न करने के लिए धूम्रनेत्र रखने की प्रथा थी। पर भगवान महावीर ने श्रमणों के लिए इनका निषेध किया। वमन का अर्थ उल्टी करना-'मदन' फल आदि के प्रयोग से आहार को उल्टी के द्वारा बाहर निकालना है। इसे ऊर्ध्वविरेक कहा है।६६ अपानमार्ग के द्वारा स्नेह आदि का प्रक्षेप ‘वस्तिकर्म' कहलाता है। चरक आदि में विभिन्न प्रकार के वस्तिकर्मों का वर्णन है।०६७ जुलाब के द्वारा मल को दूर करना विरेचन है। इसे अधोविरेक भी कहा है।६८ उस युग में आजीवक आदि श्रमण छिन्नविद्या, स्वरविद्या, भौम, अन्तरिक्ष, स्वप्न, लक्षण, दण्ड, वास्तुविद्या, अंगविकार एवं स्वरविज्ञान विद्याओं से आजीविका करते थे, जिससे जन-जन का अन्तर्मानस आकर्षित होता था। साधना में विघ्नजनक होने से भगवान ने इनका निषेध किया। ब्रह्मचर्य : एक अनुचिन्तन
सोलहवें अध्ययन में ब्रह्मचर्य-समाधि का निरूपण है। अनन्त, अप्रतिम, अद्वितीय, सहज आनन्द आत्मा का स्वरूप है। वासना विकृति है। ब्रह्मचर्य का अर्थ है-विकृति से बचकर स्वरूपबोध प्राप्त करना। प्रश्नव्याकरणसूत्र में विविध उपमाओं के द्वारा ब्रह्मचर्य की महिमा और गरिमा गाई है। जो ब्रह्मचर्य व्रत की आराधना करता है वही समस्त व्रत, नियम, तप, शील, विनय, सत्य, संयम आदि की आराधना कर सकता है। ब्रह्मचर्य व्रतों का सरताज है, यहाँ तक कि ब्रह्मचर्य स्वयं भगवान है। ब्रह्मचर्य का अर्थ मैथुन-विरति या सर्वेन्द्रिय संयम है। सत्य, अचौर्य, अपरिग्रह आदि व्रतों का सम्बन्ध मानसिक भूमिका से है, पर ब्रह्मचर्य के लिए दैहिक और मानसिक ये दोनों भूमिकाएँ आवश्यक हैं। इसीलिए ब्रह्मचर्य को समझने के लिए शरीरशास्त्र का ज्ञान भी जरूरी है।
मोह और शारीरिक स्थिति, ये दो अब्रह्मा के मुख्य कारण हैं। शारीरिक दृष्टि से मनुष्य जो आहार करता है उससे रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, मज्जा और वीर्य बनता है।६९ वीर्य सातवीं भूमिका में बनता है। उसके पश्चात् वह ओज रूप में शरीर में व्याप्त होता है। ओज केवल वीर्य का ही सार नहीं है,
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