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आशीर्वचन
गणनायक आचार्य 'गणी' कहलाता है। गणी की आठ संपदा अर्थात् उनके आध्यात्मिक एवं
भौतिक व्यक्तित्व का वैभव होता है। - सबसे प्रथम है आचार संपदा। आचार्य शुद्ध निर्मल चारित्रवान हो, धीर-गंभीर स्वभाव का हो। दूसरी है-श्रुत-संपदा। शास्त्रों का आदर एवं श्रद्धा पूर्वक अध्ययन करने वाला। सूत्र वै अर्थ का गंभीर ज्ञान रखने वाला तथा स्व समय-परसमय का ज्ञाता हो। इसी प्रकार शरीर-संपदा प्रभावशाली ओज-तेज युक्त संपूर्ण इन्द्रिय वाला। वचन-संपदा में : विवेकपूर्ण आदेय वचन का धनी, शालीन व मधुर भाषण करने वाला।
आचार्य देवेन्द्र मुनि को अपने शिष्य की भूमिका से ऊपर जब एक आचार्य के रूप में देखता हूँ तो विश्वास और गौरव के साथ कह सकता हँ उनमें गणी संपदा की ये चार सम्पदायें देखकर मेरा मन सन्तुष्ट और प्रसन्न होता है।
• छोटी उम्र में वैराग्य-विवेक और ज्ञान की जो त्रिवेणी उनमें देखने को मिली, वह किसी भी गुरू के लिए गौरवशाली है। अथक परिश्रम करके जैन श्रुत साहित्य की जो बहुमुखी सेवाएं उन्होंने की हैं तथा कर रहे हैं, वह आने वाले युग में एक आश्चर्य का विषय बन जायेगी। आचार्य पद का दायित्व संभालने के पश्चात् यद्यपि वे श्रुत-सेवा में इतना समय नहीं दे पा रहे हैं परन्तु संघ की सेवा, धर्म की प्रभावना के रूप में वे अपने कर्तव्यों का बड़ी सजगता और कुशलता पूर्वक निर्वाह कर रहे हैं और करते रहेंगे यही मेरी हार्दिक शुभेच्छा है।
-उपाध्याय पुष्कर मुनि
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