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* ३६६ * मूलसूत्र : एक परिशीलन नंदीसूत्र पर प्रभा टीका
नन्दीसूत्र पर एक जैनेतर विद्वान् ने संस्कृत विद्वान् विवृत्ति लिखी है जिसका नाम है-प्रभा विवृत्ति। यह विवृत्ति आचार्य मलयगिरिकृत वृत्ति को स्पष्ट करने के लिए लिखी गई है। बीकानेर ज्ञान भण्डार के संस्थापक यतिवर्य हितवल्लभ की शुभ प्रेरणा से दरबार हाईस्कूल के संस्कृत के प्रधान अध्यापक पं. जयदयाल जी ने १५६ पन्नों में लिखी है। उसकी प्रेस कॉपी श्री अमरचन्द जी नाहटा के भण्डार में सुरक्षित है। यह विवृत्ति विक्रम सं. १९५८ की वैशाख शुक्ला तृतीया तिथि को लिखी गई है। नन्दीसूत्र पर हिन्दी आदि भाषाओं में व्याख्या-साहित्य ___ संस्कृत, प्राकृत टीकाओं का परिमाण इतना बड़ा है और विषयों की चर्चाएँ इतनी गहन एवं गम्भीर हैं कि साधारण साधक के हृदयंगम नहीं होती। अतः बाद में यह आवश्यक समझा गया कि आगमों का शब्दार्थ करने वाली संक्षिप्त टीकाएँ भी हों। समय की गति को देखते हुए संस्कृत, प्राकृत भाषा अब जनभाषा न रहकर मात्र साहित्य की भाषा बन गई। अतः नन्दीसत्र आदि आगमों पर अपभ्रंश भाषा या कहीं गुजराती, मारवाड़ी मिश्रित भाषा में बालावबोध या टब्बा की रचना हुई। अठाहरवीं शताब्दी में हुए लोकागच्छ के धर्मसिंह मुनि तथा लव जी ऋषि एवं आचार्य धर्मदास जी म. आदि के लिखे हुए बालावबोध (टब्बा) विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनकी दृष्टि प्राचीन टीकाओं के अर्थ को छोड़कर कहीं-कहीं स्व-सम्प्रदाय मान्य अर्थ करने की भी रही है।
उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भ में आचार्य अमोलक ऋषि जी म. ने नन्दीसूत्र पर पत्राकार रूप में हिन्दी भाषा में सुन्दर रूप से शब्दार्थ किया है, जो आगमबत्तीसी के प्रकाशन के साथ प्रकाशित हुई है। किन्तु आचार्य श्री आत्माराम जी म. ने नन्दीसूत्र पर हिन्दी भाषा में विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की है। साथ ही आचार्य हस्तीमल जी म. ने भी नन्दीसूत्र पर हिन्दी व्याख्या लिखी है। आचार्य श्री घासीलाल जी म. ने नन्दीसूत्र पर संस्कृत, हिन्दी और गुजराती भाषा में सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत की है। ये तीनों व्याख्या-ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। इसके पश्चात् श्रमणसंघीय युवाचार्य पं. मधुकर मुनि जी म. के प्रधान सम्पादकत्व एवं तत्त्वावधान में विदुषी साध्वीरत्ना श्री उमराकुंवर जी 'अर्चना' ने नूतन परिवेश एवं भव्य शैली में नन्दीसूत्र का सम्पादन-विवेचन किया है, जो अपने आप में अनूठा है। जो आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर से प्रकाशित हुआ है। इस नन्दीसूत्र-विवेचन की यह विशेषता है कि न तो यह अत्यन्त विस्तृत है
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