SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 201
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * १९६ * मूलसूत्र : एक परिशीलन उद्धृत संदर्भ-स्थल सूची १. समवायाङ्गसूत्र, पृष्ठ ६० २. औपपातिकसूत्र ३. दशवैकालिक, हारिभद्रीया वृत्ति ४. “मगद्धविसयभासाणिबद्धं अद्धमागहं, अट्ठारस देसीभासाणिमयं वा अद्धमागहं।" -निशीथचूर्णि ५. सूत्रकृताङ्ग २/२-३९, सूत्र की टीका ६. बृहत्कल्पसूत्र, भाग ६, प्रस्तावना, पृष्ठ ५७ ७. कल्पसूत्र, प्रस्तावना, पृष्ठ ४-६ ८. अंगविज्जा, प्रस्तावना, ८-११ ९. तत्त्वार्थभाष्य १/२० १०. सुखबोधा समाचारी, पृष्ठ १३४ ११. विधिमार्गप्रपा के लिए देखिए-जैन साहित्य का बृहद् इतिहास, भाग १, प्रस्तावना, पृष्ठ ३८ १२. वायनाविही, पृष्ठ ६४ १३. प्रभावकचरित्र, आर्यरक्षित प्रबन्ध, श्लोक २४१ 98. The Uttaradhyayana Sutra, Page 32 १५. “आयारस्स उ उवरिं, उत्तरज्झयणा उ आसि पुव्वं तु। दसवेयालिय उवरिं इयाणिं किं तेन होवंती उ॥" -व्यवहारभाष्य, उद्देशक ३, गाथा १७६ १६. "पुव्वं सत्थपरिण्णा, अधीय पढियाइ होइ उवट्टवणा। इण्हिच्छज्जीवणया, किं सा उ न होउ उवट्टवणा॥' -वही, उद्देशक ३, गाथा १७४ १७. समाचारीशतक १८. “अथ उत्तराध्ययन-आवश्यक-पिण्डनियुक्ति-ओघनिर्यक्ति-दशवैकालिक-इति चत्वारि मूलसूत्राणि।' -जैनधर्मवरस्तोत्र, श्लोक ३० की स्वोपज्ञ वृत्ति १९. ए हिस्ट्री ऑफ दी कैनोनिकल लिटरेचर ऑफ दी जैन्स, पृष्ठ ४४-४५ (लेखक-एच. आर. कापड़िया) २०. “से किं तं उक्कालियं? उक्कालियं अणेगविहं पण्णत्तं, तं जहा-दसवेयालियं.।" -नन्दीसूत्र ७१ २१. “अपुहुत्तपुहुत्ताहं निद्दिसिउं, एत्थ होइ अहिगारो। चरणकरणाणुओगेण, तस्स दारा इमे हुंति॥' -दशवैकालिकनियुक्ति , गाथा ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002996
Book TitleMulsutra Ek Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year2000
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy