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उत्तराध्ययनसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन *११७*
.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-. २३०. भगवान पार्श्वनाथ का चातुर्याम धर्म, भूमिका, पृष्ठ ६ २३१. संस्कृति के चार अध्याय, पृष्ठ १२५ २३२. देखिए-लेखक का भगवान पार्श्वनाथ : एक समीक्षात्मक अध्ययन २३३. उत्तराध्ययनसूत्र २३/५८ २३४. "चंचलं हि मनः कृष्ण ! प्रमाथि बलवत् दृढम्। तस्याहं निग्रहं मन्ये, वायोरिव सुदुष्करम्॥"
-गीता ६/३४ ___ "अभ्यासेन तु कौन्तेय ! वैराग्येण च गृह्यते।"
-वही ६/३५ २३५. “अभ्यास-वैराग्याभ्यां तन्निरोधः।"
-पातंजल योगदर्शन २३६. समवायांगसूत्र, समवाय ३६ २३७. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा ४५८-४५९ २३८. उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन २४, गाथा १ २३९. नन्दीसूत्र-स्थविरावली, गाथा १ २४०. सम्-एकीभावेन, इतिः-प्रवृत्तिः समितिः २४१. तत्त्वार्थसूत्र, अध्ययन ९, सूत्र ४ २४२. मूलाराधना ६, १२०२ २४३. ऋग्वेद-वैदिक संस्कृति का विकास, पृष्ठ ४० २४४. उत्तराध्ययन, अध्ययन २६ २४५. भगवतीसूत्र २५/७ २४६. स्थानांग १०, सूत्र ७४९ २४७. “समदा सामाचारो, सम्माचारो समो व आचारो।
सव्वेसिं सम्माणं, समाचारो हु आचारो॥" -मूलाचार, गाथा १२३ २४८. जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप ग्रन्थ (लेखक-देवेन्द्र मुनि, पृष्ठ ८९९-९१०) २४९. “सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः।" -तत्त्वार्थसूत्र, अध्ययन १, सूत्र १ २५०. (क) साइकोलॉजी एण्ड मोरल्स, पृष्ठ १८९
(ख) देखिए-जैन, बौद्ध और गीता का साधनामार्ग (डॉ. सागरमल जैन) २५१. सुत्तनिपात १०/२ २५२. वही १०/४ २५३. “सद्दहानो लभते पञ्ज।"
-सुत्तनिपात १०/६ २५४. गीता १०/३० २५५. विशेषावश्यकभाष्य १८७-१९० २५६. अभिधानराजेन्द्रकोश, खण्ड ५, पृष्ठ २४२५
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