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________________ षष्ठ खण्ड ४१९ भगवान् महावीर ने लोगों से कहा किकम्मुणा बंभणो होई कम्मणा होइ खत्तिओ । वइस्सो कम्मुणा सुद्दो हवइ कम्मुणा ॥३२॥ -उत्तराध्यनसूत्र, २५ वां अध्यन, अर्थात्-कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है और कर्म से शूद्र होता है । इस तरह महावीर (और बुद्ध) ने 'कर्मणा वर्णः' के सिद्धान्त पर ही जोर दिया है और यही सिद्धान्त उत्तम व्यवस्थापक है । इसे न मानने से और इसके स्थान पर 'जन्मना वर्णः' के अपसिद्धान्त को स्थापित कर देने से भारतीय जनता की दुर्दशा हुई है । उस समय उच्चनीचभाव की संकुचित वृत्ति इतनी कट्टर और कठोर रूप से फैली हुई थी कि बेचारे नीच और हलके गिने जाने वाले मनुष्यों यदाऽपजहुर्महिलाधिकारानन्यायतः पौरुषगर्वमत्ताः । धर्माय यज्ञादिषु भूरिहिंसा पापानलः प्रज्वलितो यदाऽऽसीत् ॥३०॥ -और, जिस समय पौरुष के मद से मत्त पुरुष अन्याय से स्त्रीजाति के अधिकार छीन रहे थे और जिस समय धर्म के नाम पर यज्ञादि से पशुवध का भयंकर पापानल फैला हुआ था । एतादृशे भारत-दौःस्थ्यकाले देवार्यदेवः स 'विदेह'-भूमौ । ख्याते पुरे 'क्षत्रियकुण्ड' नाम्नि प्राजायत क्षत्रियराजगेहे ॥३१॥ (चतुर्भिः कलापकम्) –भारत की ऐसी दुर्दशा के समय 'देवार्य' देव (वर्धमान अथवा महावीर) उस समय के प्रसिद्ध 'विदेह' की राजधानी 'वैशाली' नगरी के उपनगर क्षत्रियकुण्ड' नगर में क्षत्रिय राजा के राजमहल में अवतीर्ण हुए । -लेखक की 'वीरविभूति' काव्य में से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002971
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorNyayavijay
Author
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year2003
Total Pages458
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size17 MB
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