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पंचम खण्ड
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नयों का निरूपण अर्थात् विचारों का वर्गीकरण । नयवाद यानी विचारों की मीमांसा । नय सैंकड़ों हैं । अभिप्राय अथवा वचनप्रयोग जब गिनती से बाहर हैं तब उनसे भिन्न न होने के कारण नयों की भी गणना नहीं की जा सकती । फिर भी मौलिक रूप से नयों के दो भेद किए गए हैं : द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थि क । मूल पदार्थ को 'द्रव्य' कहते है, जैसे कि घड़े की मिट्टी । मूल द्रव्य के परिणाम को 'पर्याय' कहते हैं । मिट्टी अथवा किसी भी मूल द्रव्य के ऊपर जो परिवर्तन होते रहते हैं उन सबको पर्याय समझना । वस्तु के स्थूल परिवर्तन रूप स्थूल पर्याय तो मालूम होते हैं, परन्तु प्रतिक्षण सूक्ष्म-सुसूक्ष्म-परमसूक्ष्म परिवर्तन होते रहते हैं । वे सूक्ष्म पर्याय तो अगम्य ही हैं, तथापि निश्चितरूप से प्रतीतिगोचर हो सकते हैं ।
'द्रव्यार्थिक नय' अर्थात् मूल द्रव्य पर (सामान्य स्थिर तत्त्व पर) लक्ष देनेवाला अभिप्राय, और 'पर्यायार्थिक नय' अर्थात् वस्तु के पर्यायापरिवर्तन की ओर लक्ष देनेवाला अभिप्राय । द्रव्यार्थिक नय समग्र पदार्थों को नित्य मानता है, जैसे कि घडा मूल द्रव्य-मृत्तिकारूप से नित्य है । पर्यायार्थिक नय सम्पूर्ण पदार्थों को अनित्य मानता है । क्योंकि सब पदार्थों में परिवर्तन (रूपान्तर) होता रहता है । अतः इस दृष्टि से वह वस्तुमात्र की अनित्यता का द्योतक है । सामान्यतत्त्वगामिनी विचारदृष्टि 'द्रव्यार्थिक नय' और विशेषांशगामिनी विचारदृष्टि 'पर्यायर्थिक नय' है।
__ मनुष्य की बुद्धि जब सामान्य-अंशगामी होती है तब उसका वह विचार 'द्रव्यार्थिक नय है और जब विशेषअंशगामी होती है तब उसका वह विचार 'पर्यायार्थिक नय' है । द्रव्यदृष्टि में विशेष अथवा पर्यायदृष्टि में द्रव्य न आता हो ऐसा तो नहीं है, परन्तु यह दृष्टिविभाग गौणमुख्यभाव की अपेक्षा से समझना चाहिए ।
इन दो दृष्टियों का कुछ ख्याल नीचे के दृष्टान्त से आ सकेगा ।
समद्र की ओर दृष्टिपात करने पर जब पानी का रंग, गहराई, विस्तार अथवा सीमा आदि उसकी किसी विशेषता की ओर ध्यान न जाकर केवल पानी की ओर ही ध्यान जाता है तब उसे पानी का सामान्य विचार कह सकते
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