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विषय शब्दकोष की पद्धति की तरह व्यवस्थित रूप से रखे जायेंगे तब वे (शास्त्र) प्राचीन एवं अर्वाचीन भारतीय भाषाओं तथा साहित्य के अन्धेरे प्रदेशों पर बहुत प्रकाश डालेंगे ।।
इटालियन विद्वान् डॉ० एल. पी. टेसीटोरी ने अपने व्याख्यान में जैनदर्शन की श्रेष्ठता बतलाते हुए कहा था कि
जैनदर्शन बहुत ऊँची कोटि का है । इसके मुख्य तत्त्व विज्ञानशास्त्र के आधार पर रचे हुए हैं—ऐसा मेरा अनुमान ही नहीं, पूर्ण अनुभव है। ज्यों-ज्यों पदार्थविज्ञान आगे बढ़ता जाता है, जैनधर्म के सिद्धान्तों को पुष्ट करता
केवल जैन संस्कृत-प्राकृत वाङ्मय ही नहीं, जैन शिलालेख आदि भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। भारतीय इतिहास की खोज और उसके संशोधन में इन लेखों का गौरवपूर्ण स्थान है । डॉ० गेरिनो अपने ‘Jaina Inscriptions and Indian History' नामक लेख में लिखते हैं कि
'These notes are short.' But they are sufficient, I believe, to show how many historical documents are contained in the Jaina inscriptions. A systematic study of these inscriptions as well as of the Jaina profane literature, will largely contribute to the knowledge of Indian History.'
अर्थात्-मैं समझता हूँ कि ये संक्षिप्त नोट्स यह बतलाने के लिये पर्याप्त हैं कि जैन लेखों में (शिला आदि पर उत्कीर्ण लेखों में) ऐतिहासिक ज्ञान और वृत्तान्त कितने अधिक भरे हुए हैं । इन लेखों का तथा जैनों के लौकिक-व्यावहारिक साहित्य का सुव्यवस्थित अभ्यास यदि किया जाय तो वह भारतीय इतिहास के ज्ञान में बहुत बड़ा हिस्सा प्रदान करेगा । अस्तु ।
जैन साहित्य अन्धेरे में पड़ा हुआ होने से और प्रकाश में आनेवाले या आए हुए ग्रन्थों का जैसा चाहिए वैसा प्रचार न होने से बडे-बडे विद्वान भी जैनधर्म के तत्त्वों से अपरिचित अथवा अल्पपरिचित दिखाई देते हैं । इसके अतिरिक्त ऐसा भी देखा जाता है कि अपने अनुचित पक्षमोह में फँसे
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